गुरुवार, मार्च 25, 2010

चीन को भारत की देन

स्वभाव से गर्वीले और दुनिया से अलग लोगों के बीच बौद्घ मत के प्रसार की कहानी भारतीय संस्कृति की अलौकिक प्रक्रिया का उदाहरण है। सम्राट अशोक के समय हुयी तीसरी संगीति के बाद मोग्गालिपुत्र तिस्स के नेतृत्व में सारे संसार में पुनः भारतीय संस्कृति के संदेशवाहक गए। उनसे मध्य एशिया और चीन में उसकी एक नवीन तथा अनेक शताब्दियों तक निरंतर प्रवहमान लहर उठी।

कुची क्षेत्र से गौतम बुद्ध की प्रतिमा, चित्र विकिपीडिया से
ये प्रचारक जो प्रारंभ में चीन गए, उनमें कश्यप, मातंग, धर्मरक्ष आदि थे। महायान मत के प्रचारक 'कुमारजीव' के पिता कुमारायन भारत के एक राज्य में मंत्री थे। उसे त्याग वे मध्य एशिया जाकर काशगर के उत्तर 'कुची' में, जहाँ हिंदु राज्य था, रहने लगे। वहाँ की राजकन्या 'जिवा' से उनका विवाह हुआ। जिवा अपने पुत्र कुमारजीव को उसके बचपन में शिक्षा दिलाने कश्मीर आई। यहाँ कुमारजीव ने अन्य भाषाओं के साथ चीनी भाषा सीखी और चीन को अपना कार्यक्षेत्र चुना। संस्कृत एवं पाली ग्रंथों के चीनी भाषा में अनुवाद किए और संपूर्ण जीवन चीन को समर्पित कर दिया। इस कालखंड में अनेक चीनी यात्री भारत आए और यहाँ के ज्ञान के कुछ कण पाकर अपने को धन्य माना। उनके साथ भी प्रचारकों के दल चीन गए। सहस्त्रों वर्षों तक यह प्रवाह चलता रहा। कश्मीर संस्कृत और पाली के साथ मध्य एशियाई और चीनी भाषाओं का अध्ययन केंद्र था। इन्होंने विक्रमी चौथी शताब्दी तक नालंदा के नमूने पर अनेक छोटे-बड़े विहार चीन में खड़े किए, जहाँ चीनी नवयुवक शिक्षा प्राप्त कर भारतीय संस्कृति के प्रचारक बने। चीन की प्रतिकूल धरती ने भी श्रद्घावनत होकर भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि सिर-आँखों लगायी।

यह मध्य एशिया और चीन का हिंदु जीवन मुसलमानों के आक्रमण तक चलता रहा। मध्य एशिया में मुसलमानों के आक्रमण और शासन होने के बाद उन पर घोर अत्याचारों द्वारा इसलाम लादा गया। तब भारत में भी उनके आक्रमण प्रारंभ हो गए थे और संस्कृति का प्रेरणास्त्रोत सूख गया। चीन का भारत से संबंध टूट गया। फिर भा भारतीय संस्कृति की प्रेरणा बची रही, जो साम्यवादी दर्शन के आच्छादन पर समूल नष्ट सी दिखती है।

भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जब चीन गए तो वहाँ के प्रधानमंत्री ने उनसे चीन-भारत के संबंध और मान्यता के बारे में कहा था,
'चीन में कहावत है, यदि तुम सत्कर्म करोगे तो तुम्हारा अगला जन्म भारत में होगा। वैसे भारतीय संस्कृति का चीन से कभी गुरू-शिष्य का नाता रहा है।'
कितनी श्रद्घा भारत के चरणों में चीन ने उड़ेली थी। पर भारत की विश्व-गुरू की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाते इसलाम व साम्यवाद के इन क्षेत्रों में आगमन का कारण है भारत की दैवी शक्ति का ह्रास।

स्वर्ग, अपवर्ग नामों से विभूषित त्रिविष्टप (तिब्बत) में भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। संस्कृत, पाली और उनके स्थानिक अनुवाद आज भी वहाँ के मठ-मन्दिरों में मिलते हैं। त्रिविष्टप में फैले सैकड़ों विहार विद्या के केंद्र थे, जिनकी पुस्तकें भारतीय संस्कृति की अनुपम निधि हैं। वहाँ भारतीय देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बुद्घ भगवान के साथ सम्मान से प्रतिष्ठित हैं। वहाँ मानसरोवर झील है, जिसकी युधिष्ठिर ने अपने भाइयों व द्रौपदी सहित स्वर्गारोहण के समय यात्रा की। तिब्बती लोगों के जीवन का भारत से सदा का नाता रहा है। यह अटूट सांस्कृतिक नाता आज त्रिविष्टप पर चीनी आक्रमण तथा उनकी हवस के बाद भी कुछ सीमा तक सुरक्षित है।

ऐसे ही कोरिया और जापान। चीन व त्रिविष्टप के बौद्घ प्रचारकों द्वारा इन दूरस्थ प्रदेशों में भारतीय संस्कृति का प्रकाश फैला। जहाँ कहीं भारतीय संस्कृति का स्पर्श हुआ, उस देश की अपनी विशेषताओं को मानवतावादी दृष्टिकोण मिला, उदात्त जीवन की प्रेरणा मिली। कोरिया के भिक्षु-संघ मातृभूमि पर आक्रमण के समय शस्त्र धारण कर प्रतिरोध में कूदे। जापान में प्राचीन 'शिंतो' मत (अर्थात 'देवमार्ग') और उनकी प्रकृति पूजा से इन प्रचारकों ने पूर्ण समन्वय स्थापित किया। उनकी मूल परम्पराएं हिंदु संस्कृति की प्रेरणा से मानव धर्म के साये में फली-फूली। रामायण, महाभारत, पंचतंत्र आदि की कथाओं ने उनके साहित्य, कला और जीवन पर अमिट छाप छोड़ी। भारतीय धारणाओं के अनुसार जापान ने अपने को 'उगते सूर्य का देश' कहा।

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ -  योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ -  मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन

रविवार, मार्च 21, 2010

चीन

प्रागैतिहासिक युग में चीन में सिया (Hsia) व शांग (Shang) वंशों का राज्य कहा जाता है। किसी बड़े कार्य को प्रारंभ करते समय पशुबलि तथा नरबलि दी जाती थी। राजघराने के व्यक्ति के शरीरांत पर उसके शव के साथ सुविधापूर्वक जीने की वस्तुएँ, भोजन तथा पेय, यहाँ तक कि उसके गुलामों को भी जीवित दफना दिया जाता था। अंत में युद्घ एवं अत्याचारों से विवश हो गुलामों ने विद्रोह किया। महलों में आग लगा दी। तब विक्रम संवत् पूर्व दसवीं शताब्दी में पश्चिम से आए नए वंश का शासन प्रारंभ हुआ। सामाजिक जीवन में बहुदेववाद तथा बलि के साथ चीन के तौर-तरीके विचित्र थे। कृषक एवं उच्च वर्ग (अर्थात सामंत, राजकर्मचारी, पुजारी आदि) के जीवन में बहुत बड़ा अंतर था। ऐसे समय में बौद्घ मत चीन में आया।

कन्फूसियस का चित्र के विकिपीडिया के सोजन्य से
इस बहुदेववादी चीन में प्रचलित जीवन के बीच संभवतया भारत से संबंध होने पर दो सुधारवादी धाराएँ आईं। एक कन्फूसियस (Confucius: चीनी नाम कुंग फू जू Kung Fu Tzu) संप्रदाय  और दूसरा ताओ (Tao) । दोनों के प्रणेता समकालीन और विक्रम संवत् पूर्व पाँचवीं शताब्दी के एक ही राज्य के कहे जाते हैं। कन्फूसियस कर्मकांड विरोधी थे। उन्होंने अपने आश्रम में काव्य, इतिहास, सामाजिक उत्सव तथा संगीत की शिक्षा देना प्रारंभ किया। परलोक एवं दर्शन के स्थान पर साहित्य, नैतिक जीवन, ईमानदारी और आचार-व्यवहार की शिक्षा दी। कहा, 'राज्य का मूल आधार जनता का समर्थन है जो राजा के चरित्र, सुशासन तथा प्राचीन परंपराओं का पालन करने पर निर्भर है।' 'ताओ' का शाब्दिक अर्थ है 'मार्ग'। 'ली' या 'लाओत्जे' (= वृद्घ गुरू) ने 'ताओ' शब्द का उपयोग एक शास्वत प्राकृतिक तत्व के रूप में किया था, जिसके अनुरूप चलना है। प्राकृतिक मार्ग से हटकर सब कृत्रिम नियम आदि स्वतंत्रता का हनन है। उन्होंने कहा, 
'जो तोको काँटा बुवै ताहि बोय तू फूल।'

उसके बाद चीन में एक और विविक्त और अलगाव का अध्याय प्रारंभ हुआ। तब उत्तर में लगभग ३००० किलोमीटर लंबी 'चीन की महान दीवार' निर्मित हुयी। तत्कालीन सम्राट यिंग चेंग ने इस धमंड में कि 'इतिहास उसी से प्रारंभ होता है', अतीत के सब चिन्ह मिटाने का आदेश दिया। सभी पुस्तकें और लिखित लकड़ी व बाँस की पाटियाँ जला दी गयीं। विद्वानों एवं दार्शनिकों को मरवा डाला अथवा जीवित दफना दिया। विदेशों से संबंध-विच्छेद कर सोचा कि पहले की सभी विचारधाराओं का अंत हो गया। इस पार्थक्य की कालरात्रि के बाद जब कन्फूसियस और ताओ के विचारों का स्मरण प्रारंभ हुआ तो उनके साथ बौद्घ मत भी लहलहा उठा।

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ -  योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ -  मंगोलिया
३३- चीन

रविवार, मार्च 14, 2010

मंगोलिया

गोबी मरूभूमि के सीमावर्ती मंगोलिया के घास के मैदान में रहने-विचरने वाली अश्वारोहिणी मंगोल जाति ने कभी पूर्व में चीन के बड़े भूभाग पर राज्य किया था- बीजिंग (Beijing) (पेकिंग) को राजधानी बनाकर। पश्चिम की ओर बढ़कर कश्यप सागर तक, जिसे तुर्किस्तान कहते हैं, पर उनका आधिपत्य हुआ। भारत को छोड़ दिया जाय तो प्राचीन काल के दो बड़े साम्राज्यों का यह काल था। यूरोप और भूमध्य सागर के देशों का अपने पश्चिमी एवं पूर्वी भागों को ले रोमन साम्राज्य तथा पूर्वोत्तर में मंगोल साम्राज्य। ये दोनों साम्राज्य अत्यंत क्रूर थे। कालांतर में कश्यप सागर से गोबी मरूस्थल का क्षेत्र इसलाम पंथावलंबी बना। तब पश्चिमी मंगोल जाति और भी खूँखार हो गयी। मंगोल को अरबी में 'मुगल' पुकारते हैं। इसी मंगोल-तुर्किस्तान से आए चंगेज खाँ और तैमूर लंग सरीखे क्रूर व अधम लुटेरे। उन्हीं में से एक सरदार का पुत्र था बाबर, जिसे भारत में मुगल सत्ता का जनक कहते हैं।
मंगोलिया की पहाड़ी पर चंगेज खाँ का चित्र


परंतु पहले का साइबेरिया और उससे संलग्न मंगोलिया का भाग कभी भारतीय संस्कृति के प्रभाव-क्षेत्र थे, जहाँ दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करने की पद्घति थी। जहाँ धार्मिक कृत्य एवं पूजा गंगाजल के बिना संपन्न न होती थी, इसलिए वहीं की नदी के जल में, मंत्र द्वारा गंगाजल की प्रतिष्ठा कर धर्मकार्य पूरा किया जाता था। इनके विहारों में संस्कृत एवं अन्य भाषाओं के अनेक विषयों के प्राचीन ग्रंथ और भारतीय प्रतिमाएं मिलती हैं तथा उनके लोक-काव्य में रामायण की कथाएं। 'बैकल' झील के चारों ओर विद्या के अनेक केंद्र थे, जहाँ देवी सरस्वती के अनुपम चित्र एवं भव्य प्रतिमाएं थीं।



गोबी मरूभूमि 
 
चीन की सभ्यता अन्य प्राचीन सभ्यताओं से अपेक्षाकृत नई है। भारत से चीन जाने के दो दुर्गम मार्ग थे। एक पश्चिम में कश्मीर तथा गिलिगत की घाटी से ऊँचे पर्वत लाँघकर और दूसरा पूर्व में ब्रम्हदेश के उत्तर से। इसके बीच में है नगराज हिमालय, जिसकी चोटियाँ सदा हिम से ढकी रहती हैं। एक तीसरा मार्ग था गांधार तथा कुंभा नदी के दर्रों से होते हुए उत्तर की ओर मध्य एशिया में सर्वत्र हिंदु राज्य थे। यहीं से भारतीय संस्कृति का प्रवाह मध्य एशिया में गया। बौद्घ प्रचारकों ने भी यही मार्ग अपनाया। इसके अतिरिक्त दक्षिण-पूर्व होकर एक चौथा सागर मार्ग भी था।

इस चिट्ठी के चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ -  योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ -  मंगोलिया